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विशेषण
संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता प्रकट करने वाले शब्दों को ‘विशेषण‘ कहते हैं। जैसे-
1. काली बिल्ली चूहे के पीछे दौड़ रही है।
2. मोटा आदमी दौड़ नहीं पाया।
3. दो लड़कियाँ गुड़िया से खेल रही है।
4. मेरे पास सौ रूपये हैं।
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उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त ‘काली‘, ‘मोटा‘, ‘दो‘, और ‘सौ‘ शब्द क्रमशः ‘बिल्ली‘, ‘आदमी‘, ‘लड़कियाँ‘, ‘रूपये‘, और ‘खाना‘ शब्दों की विशेषता बता रहे हैं। काले मोटे छपे शब्द विशेषण हैं। विशेषण शब्द अपने साथ आने वाली संज्ञाओं या सर्वनाम शब्दों की चार प्रकार की विशेषता बताते हैं-
* गुण-दोष संबंधी
* संख्या संबंधी
* परिमाण या मात्रा संबंधी
* उनकी ओर संकेत करना
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विशेषण चार प्रकार के होते हैं-
* गुणवाचक विशेषण
* संख्यावाचक विशेषण
* परिमाणवाचक विशेषण
* संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण
1. गुणवाचक विशेषण – विशेषण का अर्थ ही है- ‘गुण‘।
पर ‘गुण’ का तात्पर्य केवल अच्छी विशेषणताओं से ही नहीं है। विशेषण अपने विशेष्य के गुण, दोष, रूप, रंग, आकार, स्थान, दशा, काल, स्थिति, स्वभाव, गंध, स्वाद, ध्वनि, दिशा संबंधी विशेषताओं की ओर भी संकेत करता हैै।
जैसे –
गुण – अच्छा, ईमानदार, बुद्धिमान, वीर, साहसी, मेधावी, परिश्रमी आदि।
दोष – बुरा, बेईमान, मूर्ख, कायर, आलसी, दुष्ट, नीच, आदि।
रूप – सुंदर, आकर्षक, ललित, प्रभावशाली, आदि।
रंग – लाल, नीला, पीला, काला, सफ़ेद, गुलाबी आदि।
आकार – गोल, चौकोर, तिकोना, लंबा आदि
स्थान – देश, विदेश, भारतीय, जापानी, लखनवी, बंगाली,
दशा/अवस्था – रोगी, कमजोर, स्वस्थ, दुर्बल, नीरोग, आदि।
स्वाद – खट्टा, मीठा, नमकीन, चटपटा, खारा, कसैला, कडुआ आदि।
स्थिति – पिछला, अगला, ऊपरी, बाहरी, अंतिम आदि।
गंध – सुगंधित, दुर्गंधित, खुशबूदार, गंधहीन आदि।
दिशा – उत्तरी, पूर्वी, पश्चिमी, दक्षिणी आदि।
ध्वनि – कर्कश, मधुर, सुरीली आदि।
स्पर्श – नरम, मुलायम, सख्त, कठोर, गुदगुदा आदि।
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2. संख्यावाचक विशेषण –
जिस विशेषण शब्द से किसी संज्ञा की संख्या का बोध होता है, वह ‘सख्यावाचक विशेषण‘ कहलाता है। जैसे-
1. मेरी कक्षा में बीस छात्र हैं।
2. मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता हूँ।
3. उसने प्रथम पुरस्कार जीता।
4. उसके पास बहुत रूपये हैं।
उपर्युक्त वाकयों में प्रयुक्त ‘बीस‘, ‘प्रथम‘, ‘दसवीं‘, और ‘बहुत‘ विशेषणों से विशेष्यों की संख्या का बोध हो रहा है; अतः ये चारों संख्यावाचक विशेषण हैं।
संख्यावाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं –
(क) निश्चित संख्यावाचक विशेषण
(ख) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण
(क) निश्चित संख्यावाचक विशेषण – जो विशेषण अपने विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें ‘निश्चित संख्यावाचक विशेषण‘ कहते हैं।
जैसे –
एक, दो, पाँच, सौ आदि।
(ख) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण –
जिस विशेषण से किसी संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित संख्या का बोध न हो, वह ‘ अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण‘ कहलाता है।
जैसे –
1. कुछ लड़के पार्क मे खेल रहे हैं।
2. आज विद्यालय मे थोड़े छात्र आए हैं।
3. उसके पास अनेक खिलौने हैं।
4. वहाँ कई आदमी बैठे हैं।
3. परिमाणवाचक विशेषण –
परिमाण शब्द का अर्थ है- ‘मात्रा‘, जो विशेषण अपने विशेष्य की मात्रा या परिमाण का बोध कराए, वह ‘परिमाणवाचक विशेषण‘ कहलाता है।
जैसे –
1. मैंने दस किलो आटा खरीदा।
2. मुझे एक लीटर दूध चाहिए।
संख्यावाचक विशेषणों की तरह परिमाणवाचक विशेषण भी दो प्रकार के होते हैं-
(क) निश्चित परिमाणवाचक विशेषण –
विशेषण अपने विशेष्य की निश्चित माप-तोल संबंधी विशेषता प्रकट करते हैं, वे ‘निश्चित परिमाणवाचक विशेषण‘ कहलाते हैं।
जैसे –
दस मीटर कपड़ा, एक क्ंवटल कोयला, पाँच लीटर तेल आदि।
(ख) अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण –
जो विशेषण अपने विशेष्यों की माप-तोल संबंधी जानकारी तो दें, परंतु उससे उनकी निश्चित परिमाण या मात्रा का पता न दे, वे ‘अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण‘ कहलाते हैं;
जैसे –
1. मैं थोड़ा दूध लेकर आया।
2. दुकान में बहुत चीनी है।
4. सार्वनामिक/ संकेतवाचक विशेषण –
यदि कोई सर्वनाम किसी संज्ञा के पूर्व आकर उसकी ओर संकेत करे, तब वह सर्वनाम न रहकर ‘सार्वनामिक विशेषण‘ बन जाता है।
जैसे –
1. वह लड़का दौड़ जीत गया।
2. यह किताब मोहन की है।
इन वाक्यों में ‘वह‘ और ‘यह‘ मूलतः सर्वनाम शब्द है। पर इन वाक्यों में ‘लड़का‘ और ‘किताब‘ संज्ञाओं से पूर्व आकर उनकी ओर संकेत कर रहे हैं, इसलिए ये संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहे जाते हैं।
विशेषणों की रचना
हिंदी में प्रयोग किए जाने वाले विशेषण दो प्रकार के होते हैं-
1. मूल विशेषण –
जैसे- बड़ा, अच्छा, लंबा, छोटा, चतुर, निपुण आदि।
2. व्युत्पन्न विशेषण –
ऐसे विशेषण जो संज्ञा, क्रिया, सर्वनाम, अव्यय आदि शब्दो से बनाए गए हैं; जैसे- ‘नमक‘ संज्ञा से ‘नमकीन‘, ‘चलना‘ क्रिया से ‘चालू‘, ‘वह‘ सर्वनाम से ‘वैसा‘, ‘ऊपर‘ अव्यय से ‘ऊपरी‘ आदि।
व्युत्पन्न विशेषणों की रचना मुख्य रूप से तीन प्रकार से की जा सकती है-
1. शब्द से पूर्व ‘उपसर्ग‘ का प्रयोग करके;
जैसे –
‘बल‘ शब्द से ‘दुर‘ उपसर्ग जोड़कर ‘दुर्बल‘।
2. शब्द के अत में ‘प्रत्यय‘ जोड़कर
जैसे –
‘रंग‘ शब्द के अंत में ‘ईन‘ प्रत्यय जोड़कर ‘रंगीन‘।
3. उपसर्ग और प्रत्यय दोनो का प्रयोग करके,
जैसे –
‘न्याय ‘शब्द‘ से पूर्व ‘अ‘ उपसर्ग तथा अंत मे ‘ई‘ प्रत्यय का प्रयोग करके,
जैसे –
अ न्याय ई = अन्यायी।
(क) उपसर्गों के योग से बने विशेषण शब्दों के उदाहरण –
1. शब्द से पूर्व ‘अ‘ उपसर्ग जोड़कर-
असमय, अयोग्य, असमर्थ, अबोध, अशक्त, अनाथ, अथाह आदि।
2. शब्द से पूर्व ‘नि‘ उपसर्ग जोड़कर-
निडर, निकम्मा, निहत्था, निठल्ला, निपूती आदि।
3. शब्द से पूर्व ‘स‘ उपसर्ग जोड़कर-
सजग, सफल, सपूत, सजीव, सरस आदि।
4. शब्द से पूर्व ‘निर‘ उपसर्ग जोड़कर-
निर्मल, निर्दोष, निर्गुण, निर्भय, निर्लज्ज, निर्जीव, निर्धन आदि।
5. शब्द से पूर्व ‘दुर्‘ उपसर्ग जोड़कर-
दुर्गुण, दुर्जन, दुर्गम, दुर्लभ आदि।
6. शब्द से पूर्व ‘प्र‘ उपसर्ग जोड़कर-
प्रसिद्ध, प्रबल, प्रसन्न, आदि।
7. शब्द से पूर्व ‘सु‘ उपसर्ग जोड़कर-
सुगम, सुलभ, आदि।
8. शब्द से पूर्व ‘स्व‘ उपसर्ग जोड़कर-
स्वतंत्र, स्वाधीन, स्वदेश, आदि।
9. शब्द से पूर्व ‘अध‘ उपसर्ग जोड़कर-
अधपका, अधकचरा, अधमरा, अधजला आदि।
10. शब्द से पूर्व ‘ला‘ उपसर्ग जोड़कर-
लाइलाज, लाजवाब, लापरवाह, लाचार, लापता, लावारिस आदि
11. शब्द से पूर्व ‘बेे‘ उपसर्ग जोड़कर-
बेकसूर, बेफकूफ, बेरहम, बेकार आदि।
12. शब्द से पूर्व ‘बद‘ उपसर्ग जोड़कर-
बदनाम, बदसूरत, बदकिस्मत, बददिमाग आदि।
प्रत्ययों के योग से विशेषणों की रचना
1. ‘इक‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
धर्म धार्मिक मास मासिक
अर्थ आर्थिक सप्ताह साप्ताहिक
समाज सामाजिक व्यवहार व्यावहारिक
नीति नैतिक शिक्षा शैक्षिक
राजनीति राजनैतिक विचार वैचारिक
इतिहास ऐतिहासिक इच्छा ऐच्छिक
दिन दैनिक मंगल मांगलिक
वेद वैदिक सेना सैनिक
देह दैहिक संप्रदाय सांप्रदायिक
अध्यात्म आध्यात्मिक करूणा कारूणिक
प्रमाण प्रामाणिक विवाह वैवाहिक
तर्क तार्किक बुद्धि बौद्धिक
भूत भौतिक उद्योग औद्योगिक
भूगोल भौगोलिक समय सामयिक
संकेत सांकेतिक श्रम श्रमिक
लोक लौकिक विज्ञान वैज्ञानिक
अलंकार आलंकारिक अंतर आंतरिक
प्रदेश प्रादेशिक कल्पना काल्पनिक
हृदय हार्दिक समुदाय सामुदायिक
2. ‘इत‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
घृणा घृणित पुष्प पुष्पित
अंक अंकित उपेक्षा उपेक्षित
निंदा निंदित चिंता चिंतित
सम्मान सम्मानित अपमान अपमानित
उल्लास उल्लसित उच्चारण उच्चरित
सुगंध सुगंधित कलंक कलंकित
संचय संचित अपेक्षा अपेक्षित
3. ‘इम‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
स्वर्ण स्वर्णिम रक्त रक्तिम
आदि आदिम अंत अंतिम
4. ‘ई‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
जंगल जंगली शहर शहरी
परिश्रम परिश्रमी लालच लालची
साहस साहसी बनारस बनारसी
नागपुर नागपुरी ऋण ऋणी
विदेश विदेशी स्वदेश स्वदेशी
गुलाब गुलाबी दोष दोषी
लखनऊ लखनवी पंजाब पंजाबी
रोग रोगी प्रेम प्रेमी
उपयोग उपयोगी धन धनी
क्रोध क्रोधी लोभ लोभी
लालच लालची कपट कपटी
5. ‘ईय‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
स्थान स्थानीय भारत भारतीय
मानव मानवीय स्वर्ग स्वर्गीय
पर्वत पर्वतीय शास्त्र शास्त्रीय
राष्ट्र राष्ट्रीय स्मरण स्मरणीय
अनुकरण अनुकरणीय ईश्वर ईश्वरीय
6. ‘ईन‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
रंग रंगीन नमक नमकीन
तत्काल तत्कालीन युग युगीन
ग्राम ग्रामीण प्रातःकाल प्रातःकालीन
कुल कुलीन
7. ‘ईला‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
चमक चमकीला पत्थर पथरीला
ज़हर ज़हरीला रस रसीला
बर्फ़ बर्फ़ीला जोश जोशीला
नोक नुकीला खर्च खर्चीला
8. ‘नीय‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
पूजा पूजनीय निंदा निंदनीय
दया दयनीय आदर आदरणीय
परिवर्तन परिवर्तनीय दर्शन दर्शनीय
9. ‘आलु‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
ईर्ष्या ईर्ष्यालु दया दयालु
श्रद्धा श्रद्धालु कृपा कृपालु
10. ‘आ‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
भूख भूखा प्यास प्यासा
ठंड ठंडा नील नीला
11. ‘इल‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
ऊर्मि ऊर्मिल पंक पंकिल
स्पप्न स्पप्निल धूम धूमिल
12. ‘निष्ठ‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
कर्तव्य कर्तव्यनिष्ठ सत्य सत्यनिष्ठ
धर्म धर्मनिष्ठ तपः तपोनिष्ठ
13. ‘मान‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
गति गतिमान शक्ति शक्तिमान
श्री श्रीमान बुद्धि बुद्धिमान
14. ‘वान‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
धन धनवान बल बलवान
गुण गुणवान विद्या विद्यावान
15. ‘शाली‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
गौरव गौरवशाली ऐश्वर्य ऐश्वर्यशाली
भाग्य भाग्यशाली बल बलशाली
16. ‘वाला‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
चाय चायवाला दूध दूधवाला
घड़ी घड़ीवाला पैसा पैसेवाला
17. ‘अव‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
कुरू कौरव गुरू गौरव
रघु राघव विष्णु वैष्णव
18. ‘मय‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
दुख दुखमय सुख सुखमय
आनंद आनंदमय जल जलमय
19. ‘एरा‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
चाचा चचेरा मामा ममेरा
फूफा फुफेरा साँप सपेरा
20. ‘कार‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
पत्र पत्रकार साहित्य साहित्यकार
कला कलाकार कहानी कहानीकार
21. ‘ऊ‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
पेट पेटू बाजार बाजारू
22. ‘नाक‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
दर्द दर्दनाक खौफ खौफनाक
शर्म शर्मनाक खतरा खतरनाक
23. ‘दार‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
दुकान दुकानदार थाना थानेदार
पहरा पहरेदार चमक चमकदार
24. ‘पूर्वक‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
विधि विधिपूर्वक नियम नियमपूर्वक
25. ‘जनक‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
अपमान अपमानजनक सम्मान सम्मानजनक
26. ‘ग्रस्त‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
रोग रोगग्रस्त शोक शोकग्रस्त
27. ‘ऐला‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
विष विषैला वन वनैला
28. ‘कारक‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
हानिं हानिकारक कंष्ट कष्टकारक
29. ‘प्रद‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
हानि हानिप्रद लाभ लाभप्रद
30. ‘दायक‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
फल फलदायक कष्ट कष्टदायक
आराम आरामदायक लाभ लाभदायक
31. ‘अंत‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
सुख सुखांत दुःख दुखांत
32. ‘मय‘ प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
पाप पापमय धर्म धर्ममय
सुख सुखमय दुःख दुखमय
33. अन्य प्रत्यय जोड़कर
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
रोमांच रोमांचक विश्वास विश्वस्त
क्षय क्षीण हित हितैषी
अभियोग अभियुक्त हित हितैषी
हत्या हत्यारा धुंध धुँधला
ओज ओजस्वी संदेह संदिग्ध
व्यक्ति व्यक्तिगत शरण शरणागत
सभा सभ्य स्तुति स्तुत्य
पुरूष पुरूषार्थी मर्म मर्मांतक
बड़प्पन बड़ा परिर्वतन परिवर्तनशील
सौंदर्य सौंदर्यशाली दुर्बलता दुर्बल
चंचलता चंचल अतिथि आतिथेय
अनुवाद अनूदित उपासना उपासक
क्षत्रिय क्षात्र खेल खिलाड़ी
घाव घायल चिकित्सा चिकित्सक
मिठास मीठा ईमानदारी ईमानदार
बेईमानी बेईमान अहिंसा अहिंसक
तीन तीसरा मन मनस्वी
निंदा निंदक पाठ पाठ्य
पूजा पूज्य यदु यादव
भय भयानक मद मादक
मृत्यु मृतक झगड़ा झगड़ालू
रेत रेतीला लाठी लठैत
विधि वैध शिव शैव
सेवा सेवक सोना सुनहरा
स्वास्थ्य स्वस्थ स्वाद स्वादिष्ट
मुख मुख्य ओष्ठ ओष्ठ्य
धन धनाढ्य समीप समीपस्थ
शीत शीतल सफ़ेदी सफ़ेद
सुंदरता सुंदर भेद भिन्न
पान पनवाड़ी तट तटस्थ
प्रलय प्रलयंकार भूल भुलक्कड़
हिंसा हिंसक पोषण पोषक
नाव नाविक पिता पैतृक
ज्योति ज्योतिर्मय खटास खट्टा
अच्छाई अच्छा
सर्वनाम से विशेषण बनाना
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
वह वैसा यह ऐसा
कौन कैसा जो जैसा
हम हमारा मै मेरा
तुम तुमसा/तुम्हारा
आप आपसा,अपना
क्रिया से विशेषण बनाना
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
पत् पतित पठ् पठित
बिकना बिकाऊ लड़ना लड़ाकू
उड़ना उड़ाऊ भगाना भगौड़ा
पढ़ना पढ़ाकू कमाना कमाऊ
हँसना हँसोड़ घूमना घुमक्कड़
चलना चलाऊ टिकना टिकाऊ
लूटना लुटेरा खाना खाऊ
अव्यय शब्दों से विशेषण बनाना
शब्द विशेषण शब्द विशेषण
बाहर बाहरी ऊपर ऊपरी
नीचे निचला पीछे पिछला
आगे अगला सतह सतही
सर्वनाम
‘सर्वनाम‘ वे शब्द हैं, जो संज्ञाओं के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं।
जैसे-
श्याम एक अच्छा लड़का है। वह प्रतिदिन स्कूल जाता है।
इस वाक्य में श्याम के स्थान पर ‘वह‘ प्रयोग किया गया है। अतः ‘वह‘ सर्वनाम है। सर्वनाम का प्रयोग संज्ञा की बार-बार आवृत्ति को समाप्त करने के लिए किया जाता है।
सर्वनाम छह प्रकार के होते हैं-
1. पुरूषवाचक सर्वनाम
2. निश्चयवाचक सर्वनाम
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
4. संबंधवाचक सर्वनाम
5. निजवाचक सर्वनाम
6. प्रश्नवाचक सर्वनाम
1. पुरूषवाचक सर्वनाम –
जो सर्वनाम बोलने वाले, सुनने वाले, अथवा किसी अन्य व्यक्ति (जिसके विषय में कुछ कहा जाए) का ज्ञान कराए, वे ‘पुरूषवाचक सर्वनाम‘ कहलाते हैं।
जैसे-
उसने मुझे बताया कि तुम कल आने वाली थीं। इस वाक्य में ‘उसने‘, ‘मुझे‘, और ‘तुम‘ पुरूषवाचक सर्वनाम शब्द हैं।
पुरूषवाचक सर्वनाम के तीन भेद हैं-
(क) उत्तम पुरूष
(ख) मध्यम पुरूष
(ग) अन्य पुरूष
(क) उत्तम पुरूष- जिस सर्वनाम को वक्ता अपने लिए प्रयोग करे, उसे ‘उत्तम पुरूष सर्वनाम कहते है। जैसे- मैं, हम, मेरा, हमारा, हमारी, आदि।
(ख) मध्यम पुरूष- वक्ता जिस सर्वनाम को श्रोता के लिए प्रयोग करे, उसे ‘अन्य पुरूष सर्वनाम‘ कहते हैं। जैसे- तुम, तू, तेरा, तुम्हारा, आप, (आदरसूचक) आदि।
(ग) अन्य पुरूष- वक्ता जिस सर्वनाम का अन्य व्यक्ति के लिए प्रयोग करे, उसे ‘अन्य पुरूष सर्वनाम‘ कहते हैं। जैसे- वह, वे, उसका, उनको आदि।
2. निश्चयवाचक सर्वनाम –
जो सर्वनाम शब्द पास या दूर की किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध कराते हैं, वे ‘निश्चयवाचक सर्वनाम‘ कहलाते हैं।
जैसे-
यह, वह , ये, वे आदि।
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम –
जो सर्वनाम शब्द किसी अनिश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध कराते हैं, वे ‘ अनिश्चयवाचक सर्वनाम‘ कहलाते हैं।
जैसे-
कोई, कुछ आदि।
उदाहरण –
बाहर कोई खड़ा है। दाल में कुछ पड़ा है।
4. संबंधवाचक सर्वनाम –
जो सर्वनाम शब्द एक सर्वनाम का दूसरे सर्वनाम से संबंध बताते हैं, वे ‘संबंधवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे-
जो-सो, जैसा-वैसा, जिन्होंने -वे आदि।
5. निजवाचक सर्वनाम –
जिन सर्वनाम शब्दों के प्रयोग से उत्तम पुरूष, मध्यम पुरूष अथवा अन्य पुरूष के अपनेपन का बोध होता है, वे ‘निजवाचक सर्वनाम ‘ कहलाते हैं।
जैसे-
आप, खुद, स्वयं, अपने, अपने आप आदि।
उदाहरण –
मैं स्वयं इसका पालन करूँगा।
6. प्रश्नवाचक सर्वनाम –
जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए किया जाता है, वे ‘प्रश्नवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे –
कौन, क्या, किसे, किसने, आदि।
जैसे –
मेज़ पर क्या रखा हैं ?
बाहर कौन खड़ा है ?
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कारक (Case)
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से जाना जाए, उसे ‘कारक‘ कहते हैं। कारकों का रूप प्रकट करने के लिए उनके साथ लगने वाले शब्द चिह्न ‘विभक्ति‘ कहलाते हैं।
कारक के भेद तथा उनकी विभक्तियाँ
कारक विभक्तियाँ
कर्ता ने
कर्म को
करण से,के द्वारा, के साथ
संप्रदान को, के लिए
अपादान से (अलग होना)
संबंध का,के,की,रा,री,रे
अधिकरण में,पर
संबोधन हे,अरे,रे
1. कर्ता कारक –
क्रिया को करने वाला ही ‘कर्ता‘ कहलाता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘ने‘ है।
जैसे- मोहन ने पुस्तक पढ़ी।
मोहन (कर्ता) कारक हैं
कभी-कभी ‘ने‘ का प्रयोग नहीं होता,
जैसे- बच्चे गीत गाते हैं।
2. कर्म कारक –
शब्द के जिस रूप पर क्रिया का फल पड़ता है, उसे ‘कर्म कारक‘ कहते हैं। कर्म कारक की विभक्ति ‘को‘ है, जिसका प्रयोग प्रायः प्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ ही किया जाता है।
जैसे- अध्यापक ने बच्चों को पढ़ाया।
‘बच्चों को‘ कर्म कारक है ।
कभी-कभी ‘को‘ विभक्ति के बिना भी कर्म कारक होता है,
जैसे- सुरेश ने पत्र लिखा।
‘पत्र‘ कर्म कारक है।
3. करण कारक –
कर्ता जिसकी सहायता से कार्य संपन्न करता है, वह पद ‘करण कारक‘ होता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘से/के द्वारा‘ है।
जैसे- बच्चा चम्मच से खीर खाता है।
‘चम्मच से ‘ करण कारक है।
4. संप्रदान कारक –
जिसे कोई वस्तु प्रदान की जाए या जिसके लिए कोई क्रिया की जाए, उसे ‘संप्रदान कारक‘ कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न ‘को‘, ‘के लिए‘ हैं।
जैसे-
1. हमने गरीबों को वस्त्र दिए।
‘गरीबों को‘ संप्रदान कारक है।
2. मै अपने छोटे भाई के लिए खिलौना लाया।
‘छोटे भाई के लिए‘ संप्रदान कारक है।
5. अपादान कारक –
संज्ञा और सर्वनाम के जिस रूप से अलग होने का भाव प्रकट हो, उसे ‘अपादान कारक‘ कहते हैं। अपादान का विभक्ति चिह्न ‘से‘ है।
जैसे- वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। ‘वृक्ष‘ से‘ अपादान कारक है।
इसके साथ ही ‘निकलने‘, ‘लजाने‘, ‘डरने‘, ‘तुलना‘, करने आदि भावों में भी अपादान कारक होता है;
जैसे- गंगा हिमालय से निकलती है।
चूहा बिल्ली से डरता है।
6. संबंध कारक –
शब्द के जिस रूप से किसी व्यक्ति या वस्तु का संबंध किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु के साथ जाना जाए, उसे ‘सबंध कारक‘ कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न ‘का‘, ‘के‘, ‘की‘, ‘रा‘, ‘रे‘, ‘री‘, हैं। जैसे-
वह मोहन का भाई है और वह मेरा मित्र है।
‘मोहन का‘ और ‘मेरा‘ संबंध कारक है।
7. अधिकरण कारक –
जिस संज्ञा या सर्वनाम पद से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे ‘अधिकरण कारक‘ कहते हैं। अधिकरण कारक के विभक्ति चिह्न ‘में‘, ‘पर‘ हैं।
जैसे- मछली पानी में रहती है और कौआ पेड़ पर बैठा है।
‘पानी में‘ तथा ‘पेड़ पर‘ अधिकरण कारक है।
8. संबोधन कारक – जब किसी संज्ञा को संबोधित किया जाता है, तब ‘संबोधन कारक‘ का प्रयोग होता है। इसके विभक्ति चिह्न ‘हे‘ ‘अरे‘ आदि हैं।
जैसे- हे लड़के ! इधर आओ।
‘हे लड़के‘ संबोधन कारक है।
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Get Perfection With Executive Makers
[सामान्य अध्ययन] [GS]
ओलंपिक खेल (Olympic) सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पूर्ण विवरण
हिंदी में
ओलंपिक खेल : प्राचीन ओलंपिक खेल पहली बार 776 ईसा पूर्व में ग्रीक भगवान, ज़ीउस के सम्मान में आयोजित किए गए थे।
आधुनिक ओलंपिक खेल 1896 में खेले गए थे। इन खेलों की शुरुआत पियरे डी कूपर्टिन ने की थी। ये खेल चार साल में एक बार खेले जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) की स्थापना 1894 में चाखोन में हुई थी। इसका प्रधान कार्यालय लुसाने (स्विट्जरलैंड) में है। आईओसी में एक नेता, तीन उप नेता और सात अन्य सदस्य हैं। आईओसी के पहले प्रमुख ‘ग्रीस’ से ‘दिमित्रिया’ थे। आईओसी के प्रमुख के रूप में उनकी अवधि 1894 से 1896 थी।
‘भारतीय ओलंपिक परिषद’ की स्थापना 1924 में हुई थी और इसके पहले प्रमुख सर जे.जे.टाटा थे।
ओलंपिक प्रतीक : इसमें पांच छल्ले या मंडल शामिल हैं, जो सभी लोगों की खेल मित्रता का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक साथ जुड़े हुए हैं। छल्ले महाद्वीपों का भी प्रतीक हैं – यूरोप, एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका। प्रत्येक वलय एक अलग रंग का होता है अर्थात नीला, पीला, काला, हरा और लाल।
ओलम्पिक ध्वज : ओलम्पिक ध्वज 1913 में ‘पियरे डी कौबर्टिन’ के सुझाव पर बनाया गया था। इसका उद्घाटन 1914 में पेरिस में हुआ था, लेकिन 1920 में एंटवर्प खेलों (बेल्जियम) में पहली बार इसे एक ओलंपिक स्टेडियम के ऊपर बनाया गया था।
ओलंपिक मशाल : 1928 में एम्स्टर्डम खेलों में पहली बार स्टेडियम के प्रवेश द्वार पर एक विशाल मशाल में एक ओलंपिक लौ जलाई गई थी। लौ का आधुनिक संस्करण 1936 में बर्लिन खेलों में अपनाया गया था।
ओलंपिक आदर्श वाक्य : ओलंपिक आदर्श वाक्य ‘सिटियस- अल्टियस- फोर्टियस’ (तेज़, उच्च, मजबूत) है। इस आदर्श वाक्य की रचना फादर डिडॉन ने 1897 में की थी। इस आदर्श वाक्य को पहली बार 1920 में एंटवर्प (बेल्जियम) में प्रस्तुत किया गया था।
ओलंपिक पुरस्कार और पदक : प्राचीन समय में ओलंपिक नायकों को जैतून की शाखाओं का ताज मिलता था और आधुनिक समय में ओलंपिक चैंपियन को पदक और प्रमाण पत्र से पुरस्कृत किया जाता है। विजेता एथलीट को अब स्वर्ण पदक मिलता है, दूसरे स्थान पर रहने वाले एथलीट को रजत पदक से सम्मानित किया जाता है और तीसरे स्थान पर रहने वाले एथलीट को कांस्य पदक मिलता है। इसके अलावा, पहली से छठी रैंकिंग वाले सभी एथलीटों को एक प्रमाण पत्र प्राप्त होता है।
कुछ मुख्य बिंदु
ओलंपिक खेलों में महिलाओं की भागीदारी 1900 में दूसरे ओलंपिक खेलों में शुरू हुई।
ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी एक एंग्लो इंडियन ‘नॉर्मन प्रिचार्ड’ थे जिन्होंने 1900 में दूसरे ओलंपिक खेलों में भाग लिया और एथलेटिक्स में दो रजत पदक जीते।
मैरी लीला रो ओलंपिक खेलों में पहली भारतीय महिला प्रतिभागी हैं।
आम तौर पर ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में ग्रीस की टीम को पहला स्थान मिला और मार्च पास्ट परेड में मेजबान टीम को आखिरी में रखा गया। अन्य टीमों को अंग्रेजी वर्णमाला के वर्णानुक्रम में रखा गया है।
स्वर्ण पदक विजेता खेल महिला की अधिकतम संख्या लरीना लाव्यानिना है। उसने 9 स्वर्ण पदकों सहित 18 पदक जीते।
एक ओलंपिक में अधिकतम स्वर्ण पदक विजेता स्पोर्ट्स महिला क्रिस्टीना ओट्टी है। उन्होंने 1986 के सियोल ओलंपिक में तैराकी में 6 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
ओलंपिक में सर्वाधिक स्वर्ण पदक विजेता पुरुष खिलाड़ी यूएसए के माइकल फेल्प्स हैं। उन्होंने बीजिंग ओलंपिक 2008 में तैराकी में 8 स्वर्ण पदक जीते। उनका उपनाम ‘गोल्डन शार्क’ है।
ओलंपिक खेलों में शपथ लेने की परंपरा 1920 (एंटवर्प ओलंपिक) में शुरू हुई थी।
ओलंपिक खेलों में शुभंकर की परंपरा 1968 (मेक्सिको ओलंपिक) में शुरू हुई थी।
टेलीविजन पर ओलंपिक खेलों का सीधा प्रसारण 1960 (रोम ओलंपिक) में शुरू हुआ था।
In English
Olympic Games : Ancient Olympic games were first held in honour of the Greek God, Zeus in 776 BC.
The modern Olympic games were played in 1896.These games were started by Pierre de Coubertin. These games are played once in four years. International Olympic Committee (IOC) was established in 1894 at Chakhone. Its head office is in Lusane (Switzerland). There are one leader, three deputy leaders and seven other members in IOC. The first chief of IOC was ‘Dimitriyas’ from ‘Greece’. His duration as a chief of IOC was 1894 to 1896.
‘Indian Olympic Council’ was established in 1924 and its first chief was Sir J.J.Tata.
Olympic Symbol : It comprises five rings or circles, linked together to represent the sporting friendship of all people. The rings also symbolize the continents – Europe, Asia, Africa, Australia and America. Each ring is of a different colour i.e blue, yellow, black, green and red.
Olympic Flag : The Olympic flag was created in 1913 at the suggestion of ‘Pierre de Coubertin’. It was inaugurated in Paris in1914 but it was raised over an Olympic stadium for the first time at the Antwerp games (Belgium) in 1920.
Olympic Flame : It was at the Amsterdam Games in 1928 that for the first time an Olympic flame was lighted and burned in a giant torch at the entrance of the stadium. The modern version of the flame was adopted in 1936 at the Berlin games.
Olympic Motto : The Olympic motto is ‘Citius- Altius- Fortius’ (Faster, Higher, Stronger). This motto is composed by Father Didon in 1897.This motto was presented first time in 1920 in Antwerp (Belzium).
Olympic Prizes and Medals : While in ancient times the Olympic heroes received a crown of olive branches and in modern time, Olympic champions are rewarded with medals and certificates. The winning athlete now receives a Gold medal, the athlete in the second place is awarded a Silver medal and the third placed athlete wins a Bronze medal. In addition, all athletes ranking from first to sixth receive a certificate.
Some Main Points
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Participation of women in the Olympic Games started in the Second Olympic Games in 1900.
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First Indian player who participated in the Olympic games was an Anglo Indian ‘ Norman Prichard’ who took part in the Second Olympic Games in 1900 and won two Silver medals in Athletics.
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Marrie Lila Ro is first Indian woman participant in the Olympic games.
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Generally, in the inaugural ceremony of Olympic games the team of Greece got first place and host team is placed in the last in March past parade. The other teams are placed in the alphabetical order of English Alphabets.
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The maximum number of gold medal winner sports woman is Larina Lavyanina. She won 18 medals including 9 gold medals.
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The maximum Gold medal winner sports woman in an Olympic is Christina Otty. She got 6 Gold medals in swimming in Seoul Olympic of 1986.
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The maximum Gold medal winner male player is an Olympic is Michael Phelps of USA. He won 8 Gold medals in swimming in the Beijing Olympics 2008. His nickname is ‘ Golden Shark’.
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The tradition of taking oath in Olympic Games started in 1920 (Antwerp Olympic).
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The tradition of mascot in Olympic Games started in 1968 (Mexico Olympic).
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The live telecast of Olympic Games on television started in 1960 (Rome Olympic).
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