कारक तथा विभक्तियाँ
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कारक (Case)
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से जाना जाए, उसे ‘कारक‘ कहते हैं। कारकों का रूप प्रकट करने के लिए उनके साथ लगने वाले शब्द चिह्न ‘विभक्ति‘ कहलाते हैं।
कारक के भेद तथा उनकी विभक्तियाँ
कारक विभक्तियाँ
कर्ता ने
कर्म को
करण से,के द्वारा, के साथ
संप्रदान को, के लिए
अपादान से (अलग होना)
संबंध का,के,की,रा,री,रे
अधिकरण में,पर
संबोधन हे,अरे,रे
1. कर्ता कारक –
क्रिया को करने वाला ही ‘कर्ता‘ कहलाता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘ने‘ है।
जैसे- मोहन ने पुस्तक पढ़ी।
मोहन (कर्ता) कारक हैं
कभी-कभी ‘ने‘ का प्रयोग नहीं होता,
जैसे- बच्चे गीत गाते हैं।
2. कर्म कारक –
शब्द के जिस रूप पर क्रिया का फल पड़ता है, उसे ‘कर्म कारक‘ कहते हैं। कर्म कारक की विभक्ति ‘को‘ है, जिसका प्रयोग प्रायः प्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ ही किया जाता है।
जैसे- अध्यापक ने बच्चों को पढ़ाया।
‘बच्चों को‘ कर्म कारक है ।
कभी-कभी ‘को‘ विभक्ति के बिना भी कर्म कारक होता है,
जैसे- सुरेश ने पत्र लिखा।
‘पत्र‘ कर्म कारक है।
3. करण कारक –
कर्ता जिसकी सहायता से कार्य संपन्न करता है, वह पद ‘करण कारक‘ होता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘से/के द्वारा‘ है।
जैसे- बच्चा चम्मच से खीर खाता है।
‘चम्मच से ‘ करण कारक है।
4. संप्रदान कारक –
जिसे कोई वस्तु प्रदान की जाए या जिसके लिए कोई क्रिया की जाए, उसे ‘संप्रदान कारक‘ कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न ‘को‘, ‘के लिए‘ हैं।
जैसे-
1. हमने गरीबों को वस्त्र दिए।
‘गरीबों को‘ संप्रदान कारक है।
2. मै अपने छोटे भाई के लिए खिलौना लाया।
‘छोटे भाई के लिए‘ संप्रदान कारक है।
5. अपादान कारक –
संज्ञा और सर्वनाम के जिस रूप से अलग होने का भाव प्रकट हो, उसे ‘अपादान कारक‘ कहते हैं। अपादान का विभक्ति चिह्न ‘से‘ है।
जैसे- वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। ‘वृक्ष‘ से‘ अपादान कारक है।
इसके साथ ही ‘निकलने‘, ‘लजाने‘, ‘डरने‘, ‘तुलना‘, करने आदि भावों में भी अपादान कारक होता है;
जैसे- गंगा हिमालय से निकलती है।
चूहा बिल्ली से डरता है।
6. संबंध कारक –
शब्द के जिस रूप से किसी व्यक्ति या वस्तु का संबंध किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु के साथ जाना जाए, उसे ‘सबंध कारक‘ कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न ‘का‘, ‘के‘, ‘की‘, ‘रा‘, ‘रे‘, ‘री‘, हैं। जैसे-
वह मोहन का भाई है और वह मेरा मित्र है।
‘मोहन का‘ और ‘मेरा‘ संबंध कारक है।
7. अधिकरण कारक –
जिस संज्ञा या सर्वनाम पद से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे ‘अधिकरण कारक‘ कहते हैं। अधिकरण कारक के विभक्ति चिह्न ‘में‘, ‘पर‘ हैं।
जैसे- मछली पानी में रहती है और कौआ पेड़ पर बैठा है।
‘पानी में‘ तथा ‘पेड़ पर‘ अधिकरण कारक है।
8. संबोधन कारक – जब किसी संज्ञा को संबोधित किया जाता है, तब ‘संबोधन कारक‘ का प्रयोग होता है। इसके विभक्ति चिह्न ‘हे‘ ‘अरे‘ आदि हैं।
जैसे- हे लड़के ! इधर आओ।
‘हे लड़के‘ संबोधन कारक है।
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