अलंकार
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
अलंकार का तात्पर्य –
अलंकार में ‘अलम्‘ और ‘कार‘ दो शब्द है। ‘अलम्‘ का अर्थ है भूषण् सजावट। अर्थात जो अलंकृत या भूषित करे वह अलंकार है। जिस प्रकार आभूषण शरीर की शोभा बढ़ाते है, वैसे ही अलंकार के प्रयोग से काव्य में चमत्कार, सौदर्य और आकर्षण उत्पन्न हो जाता है।
अलंकार के मुख्य दो भेद होते है-
1. शब्दालंकार
2. अर्थालंकार
1. शब्दालंकार –
जहाँ किसी कविता मे शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार या सौंदर्य पैदा होता है, वहाँ शब्दालंकार होता है।
इसके प्रमुख भेद हैं- अनुप्रास,यमक, श्लेष।
(क) अनुप्रास –
जहाँ एक ही वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे-
मुदित महीपति मंदिर आये। सेवक सचिव सुमंत बुलाये।
इस चौपाई में पूर्वार्द्ध में म की ओर उत्तरार्द्ध में स की तीन बार आवृत्ति हुई है।
अनुप्रास के पाँच भेद हैं- छेकानुप्रास, व्रत्यानुप्रास, श्रुत्यानुप्रास, अंत्यानुप्रास, लाटानुप्रास।
* छेकानुप्रास –
जहाँ स्वरूप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार हो, वहाँ छेकानुप्रास होता है । इसमंें व्यंजन वर्णांे का उसी क्रम में प्रयोग होता है। ‘रस‘ और ‘सर‘ में छेकानुप्रास नहीं है। ‘सर‘- ‘सर‘ में वर्णें की आवृत्ति उसी क्रम ओर स्वरूप में हुई है। अतएव यहाँ छेकानुप्रास है।
उदाहरण-
1. रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै
साँसें भरि आँसू भरि कहत दई दई।
यहाँ ‘रीझि‘रीझि‘, रहसि-रहसि‘, ‘हँसि-हँसि‘ और ‘दई-दई‘ में छेकानुप्रास है क्योकि व्यंजन वर्णो की आवृत्ति इन्हीं क्रम और स्वरूप में हुई है।
2. बंदउँ गुरु पद पदुम परागा,
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
यहाँ पद‘ और ‘पदुम‘ में ‘प‘ ओर ‘द‘ की एकाकार आवृति स्वरूपतः अर्थात् ‘प‘ ओर ‘प‘, ‘द‘, और ‘द‘ की आवृत्ति एक ही क्रम में, एक बार ही हुई है क्योंकि ‘पद‘ के ‘प‘ के बाद ‘द‘ की आवृत्ति ‘पदृम‘ में भी ‘प‘ के बाद ‘द‘ के रूप में हुई है। ‘छेक‘ का अर्थ चतुर है। चतुर व्यक्तियों को यह अलंकार विशेष प्रिय है।
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
JOIN NOW
TARGET NO-1 CLASSES
{A UNIT OF}
EXECUTIVE MAKERS PVT.LTD.
FOR
ONLINE AND OFFLINE COURSES
FOR ALL ACADEMIC & COMPETITIVE EXAMS
CONTACT AT : 8445003800
Mail at : executivemakerspvtltd12@gmail.com
*वृत्तयानुप्रास – जहाँ एक व्यंजन की आवृत्ति एक या अनेंक बार हो वहाँ वृत्त्यानुप्रास होता है। रसानुकूल वर्णो की योजना की वृत्ति कहते है।
उदाहरण-
1. सपने सुहले मन भाये।
यहाँ ‘स‘ वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है।
2. सेस सहसे गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।
यहाँ ‘स‘ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है।
छेकानुप्रास ओर वृत्त्यानुप्रास का अन्तर –
छेकानुप्रास में अनेक व्यंजनो की एक बार स्वरूपः और क्रमतः आवृत्ति होती है। इसके विपरीत, वृत्त्यानुप्रास में अनेक व्यजनों की आवृत्ति एक बार केवल स्वरूपतः होती है, क्रमतः नहीं। यदि अनेक व्यंजनों की आवृत्ति स्वरूपतः ओर क्रमतः होती भी है तो एक बार नहीं, अनेक बार भी हो सकती है।
* लाटानुप्रास – जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो लेकिन तात्पर्य या अन्वय में भेद हो तो वहाँ ‘लाटानुप्रास होता है। यह यमक का ठीक उल्टा होता है। इसमें मात्र शब्दों की आवृति होकर तात्पर्यमात्र के भेद से शब्द और अर्थ दोनों की आवृत्ति होती है।
जैसे-
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
इन दो पंक्तियों में शब्द प्रायः एक से हैं और अर्थ भी एक ही है। प्रथम पंक्ति के ‘के पात्र समर्थ‘ का स्थान दूसरी पंक्ति में ‘थी जिनके अर्थ‘ शब्दों ने ले लिया है। शेष शब्द ज्यों-के-त्यों हैं। दोनो पंक्तियों में तेगबहादुर के चरित्र में गुरुपदवी की उपयुक्तता बतलाई गई हैं। यहाँ शब्दों की आवृत्ति के साथ-साथ अर्थ की भी आवृत्ति हुई है।
एक अन्य उदाहरण-
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
इसमें ‘मनुष्य‘ शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है। दोनो का अर्थ ‘आदमी‘ है। लेकिन, तात्पर्य या अन्वय में भेद है । पहला मनुष्य कर्ता है और दूसरा सम्प्रदान।
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
(ख) यमक –
जहाँ एक शब्द की आवृति दो या दो से अधिक बार होती है परंतु उनके अर्थ अलग-अलग होते हैं, वहाँ यमक अलंकार होता है।
जैसे-
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाये बौराए नर, इहि पाए बौराय।।
यहाँ कनक शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं – धतूरा और सोना।
(ग) श्लेष –
जहाँ एक शब्द का एक ही बार प्रयोग होता है परंतु उसके अर्थ अनेक होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
जैसे-
*रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानूष चून।।
इस उदाहरण में ‘पानी के तीन अर्थ हैं चमक (मोती के लिए), प्रतिष्ठा (मनुष्य के लिए) तथा जल (आटे के लिए)।
*माया महाठगिनी हम जानी
तिरगुन फाँस लिए कर डोले, बोले मधुरी बानी।
यहाँ ‘तिरगुन‘ शब्द में शब्दृलेष की योजना हुई है। इसके दो अर्थ हैं- तीन गुण- सत्व, रजस, तमस। दूसरा अर्थ है – तीन धागोंवाली रस्सी । ये दोनों अर्थ प्रकरण के अनुसार ठीक बैठते हैं क्योंकि इनकी अर्थसंगति ‘महाठगिनि माया‘ से बैठाई गई है।
*चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गँभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।
यहाँ ‘वृषभानुजा‘ और ‘हलधर‘ श्लिष्ट शब्द हैं, जिनसे बिना आवृत्ति के ही भिन्न-भिन्न अर्थ निकलते हैं। ‘वृषभानुजा से ‘वृषभानु की बेटी‘ (राधा) और ‘वृषभ की बहन‘ (गाय) का तथा ‘हलधर के बीर‘ से कृष्णा (बलदेव के भाई) और साँड़ (बैल के भाई) का अर्थ निकलता है।
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
2. अर्थालंकार –
जहाँ काव्य में सौंदर्य अथवा चमत्कार अर्थ की विशिष्टता के कारण आया हो, वहाँ अर्थालंकार होता है। अर्थालंकार के 100 से अधिक भेद होते है, जिनमें मुख्य निम्न हैं-
(क) उपमा –
जहाँ दो वस्तुआंे के बीच समानता का भाव व्यक्त किया जाता है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
जैसे-
*हरिपद कोमल कलम से
(भगवान के चरण कमल के समान कोमल है।)
उपमा के चार भेद होते है।
उपमेय- जिस वस्तु की तुलना की जाए उसे उपमेय कहते है। यहाँ भगवान के चरण उपमेय है।
उपमान- जिस वस्तु से तुलना की जाए उसे उपमान कहते है। यहाँ कमल उपमान है।
धर्म- जिस बात मे तुलना की जाए, उसे धर्म कहते हैं, यहाँ ‘कोमल‘ धर्म है।
वाचक- जिस शब्द में तुलना की जाए, उसे वाचक कहते हैं। यहाँ ‘के समान‘ वाचक है।
उदाहरण का स्पष्टीकरण-
हरपिद कोमल कमल से
हरिपद (उपमेय) की तुलना कमल (उपमान) से कोमलता के कारण की गई है। अतः उपमा अलंकार है।
*नवल सुन्दर श्याम-शरीर की,
सजल नीरद-सी कल कान्ति थी।
इस उदाहरण का विृलेषण इस प्रकार होगा-
कान्ति-उपमेय; नीरद-उपमान,
सी-समानतावाचक पद; कल-समान धर्म।
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
(ख) रूपक –
जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप करके उनकी एकरूपता का प्रतिपादन किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यहाँ पर उपमेय उपमान का रूप धारण कर लेता है। जैसे-
*चरण कमल बन्दौ हरि राई।
इसमें ‘चरण‘ (उपमेय) पर ‘कमल‘ (उपमान) का आरोप हुआ है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
*बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।।
यहाँ अम्बर, तारा और ऊषा (जो उपमेय हैं) पर क्रमशः पनघट, घट और नागरी (जो उपमान है) का आरोप हुआ है। वाचक पद नहीें आए हैं और उपमेय (प्रस्तुत) तथा उपमान (अप्रस्तुत) दोनों का साथ-साथ वर्णन हुआ है।
(ग) उत्प्रेक्षा –
जहाँ पर उपमेय में उपमान की संभावना की जाये, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमे प्रायः मनु, जनु, मानो, जानो, निश्चय जैसे शब्दो का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
*सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात
मनो नीलमनि-सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात।।
श्रीकृष्ण पीतांबर पहने हुए है। उनके शरीर को देखकर ऐसा लगता है। (मानो) नील पर्वत पर प्रभात के सूर्य का (पीले रंग का) प्रकाश पड़ रहा हो।
यहाँ उपमेय (श्रीकृष्ण) में उपमान (नील पर्वत पर सूर्य का प्रकाश) की संभावना की गई है। यह मनो शब्द से प्रकट हो रहा है।
*फूले कास समकल महि छाई।
जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई।।
यहाँ वर्षा ऋतु के बाद शरद के आगमन का वर्णन हुआ है। शरद में कास के खिले हुए फूल ऐसे मालूम होते हैं जैसे वर्षा ऋतु का बुढ़ापा प्रकट हो गया हो। यहाँ ‘कास के फूल‘ (उपमेय) में ‘वर्षा ऋतु के बुढ़ापे‘ (उपमान) की सम्भावित कल्पना की गई है। इस कल्पना से अर्थ का चमत्कार प्रकट होता है। वस्तुतः अन्त में वर्षा ऋतु की गति और शक्ति बुढ़ापे की तरह शिथिल पड़ जाती है। उपमा में जहाँ ‘सा‘, ‘तरह‘, आदि वाजक पद रहते है, वहाँ उत्प्रेक्षा में ‘मानो‘, ‘जानो‘, आदि शब्दों द्वारा सम्भावना पर जोर दिया जाता है।
जैसे – ‘आकाश मानो अंजन बरसा रहा है‘ (उत्प्रेक्षा) ‘अंजन-सा अँधेरा‘ (उपमा) से अधिक जोरदार है।
(घ) उल्लेख –
जहाँ एक वस्तु का अनेक प्रकार से उल्लेख किया जाए वहाँ उल्लेख अलंकार होता है। जैसे-
तू रूप है किरन में, सौंदर्य है सुमन में।
तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में।
तू ज्ञान हिंन्दुओं में, ईमान मुस्लिमों में।
तू प्रेम क्रिश्चयन में, है सत्य तू सुजन में।
(ड) संदेह –
जहाँ किसी वस्तु को देखकर संशय बना रहे, निश्चय न हो सके वहाँ संदेह अलंकार होता है। जैसे-
सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है,
कि सारी है की नारी है, कि नारी ही की सारी है।
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
(च) भ्रांतिमान –
उपमेय में उपमान की भ्रान्ति होने से किसी और वस्तु को कोई और वस्तु मान लिया जाता है। वहाँ भ्रंतिमान अलंकार होता है।
जैसे-
नाक का मोती अधर की कांति से
बीज दाड़िम का समझकर भ्रंाति से
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?
यहाँ ओठों की लालिमा नाक के मोती पर पड़ने से मोती अनार के दाने के समान दिखाई पड़ता है। इसे देख एक तोता नाक को (लाल चोंच मानकर ) भ्रमवृा तोता मान बैठता है। अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।
(छ) अतिशयोक्ति –
जहाँ किसी वस्तु का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
*अब जीवन की है कपि न कोय।
कनगुरिया की मुँदरी कंगना होय।।
*बाँधा था विधु को किसने, इन काली अंजीरो से,
मणि वाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ हीरों से।।
यहाँ मोतियों से भरी हुई प्रिया की माँग का कवि ने वर्णन किया है। विधु या चंद्र से मुख का, काली जंजीरो से केश और मणि वाले फणियों से मोती भरी माँग का बोध होता है।
(ज) व्यतिरेक –
जहाँ उपमेय को उपमान से बढ़ाकर या उपमान को उपमेय से घटाकर वर्णन किया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
जैसे-
संत हृदय नवनीत समाना, कहा कविन पै कहन न जाना।
(झ) विराधाभास –
जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास किया जाये, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।
जैसे-
या अनुरागी चित्त की , गति समुझे नहिं कोई।
ज्यों-ज्यों बूड़ै श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जवल होई।।
यहाँ कहा गया है कि श्याम रंग (काले रेग) अर्थात श्रीकृष्ण की भक्ति में मन जितना अधिक डूबता है, उतना ही अधिक उज्ज्वल होता जाता है।
(ट) दृष्टांत –
जहाँ उपमेय, उपमान और साधारण धर्म का बिंब-प्रतिबिंब भाव होता है, वहाँ दृष्टांत अलंकार होता है।
जैसे-
*बसै बुराई जासु तन, ताही को सन्मान।
भलो भलों कहि छोड़िए, खोटे ग्रह जप दान।।
*सुख-दुख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरन।
फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि में ओझल हो धन।।
20 Amazing अलंकार Figure of Speech
(ठ) प्रतीप –
प्रतीप का अर्थ है प्रतिकूलता। यह उपमा से उल्टा होता है। अतः इसे विपरीतोपमा भी कहते हैं। जहाँ प्रसिद्ध उपमान को उपमेय और उपमेय को उपमान कहा जाये, वहाँ प्रतीप अलंकार होता है।
जैसे-
का घूँघट मुख मूँदहु नवला नारि।
चंद सरग पर सोहत यहि अनुहारि।।
(ड) विभावना –
विभावना विृोष भावना को कहते हैं, जहाँ कारण के अभाव में कार्य हो जाता है वहाँ विभावना अलंकार होता है।
जैसे-
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बढ़ जोगी।
(ढ) असंगति –
कारण और कार्य में संगति न होने पर असंगति अलंकार होता है।
जैसे-
हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरे
(त) काव्यलिंग –
जहाँ पर युक्ति द्वारा कारण देकर पद वाक्य के अर्थ का समर्थन किया जाये वहाँ काव्यलिंग अलंकार होता है।
जैसे-
श्याम गौर किमि कहौं बखानी।
गिरा अनयन नयन बिनु बानी।।
(थ) ब्याजस्तुति –
जहाँ पर स्तुति के वाक्यों द्वारा निंदा और निंदा के वाक्यों द्वारा स्तुति प्रकट हो, वहाँ पर ब्याजस्तुति अलंकार होता है।
जैसे-
राम साधु तुम साधु सुजाना।
राम मातु तुम भलि पहिचाना।।
स्वभावोक्ति
चितवनि भोरे भाय की, गेरे मुख मुसकानि।
लगनि लटकि आली गरे, चित खटकति नित आनि।।
नायक नायिका की सखी से कहता है कि उस नायिका की वह भोलेपन की चितवन, वह गेरे मुख की हँसी और वह लटक-लटककर सखी के गले लिपटना- ये चेष्टाए नित्य मेरे चित्त में खटका करती है। यहाँ नायिका के जिन आंगिक व्यापारो का चित्रण हुआ है, वे सभी स्वभाविक है। कहीं भी अश्यिोक्ति से काम नहीं लिया गया। इसमें वस्तु, दृश्य अथवा व्यक्ति की अवस्थाओ या स्थितियों का यथार्थ अंकन हुआ है।